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Showing posts from October, 2018

नज़्म

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।। एकाकी हों चला हैं दिल, ज़हन में भी अंधेरा अब अधूरा है, तपन हैं बुझे घावों में बस ये दर्द ही हैं जो अब ज़िन्दा है सीने में, कश्मकश है, उलझन हैं सांसो मे, बस जीते रहने की आदत से ये दिल भी रहने लगा है इस सीने में कहीं ।। ।। दर्द को आवाज़ नही, जिस्म पे कोई घाव नही, महफूज़ है सीने में दर्द तेरा मानो कोई इल्म छुपाए हो जीने का, बरसों हो गए तुम्हें इस दिल से गुजरे, आज ये विराना ही सही मगर इन विरानो में कुछ यादें जिन्दा आज भी है ।।  ।। दिल ही तो था जो जलता रहा सीने में, मन का क्या दुनिया के दस्तूरो ने इसे कब का विराना कर दिया, आबाद है रूह ज़िन्दगी की इन विरानो में, यकीन मानो बीते हुए कल की झलक, तुम्हारे होने की खुशबू और तुम्हारे हसने की खिलखिलाहट यहा बिखरी हुई आज भी हैं ।। ...विजय शेखर सिंह  

..एहसास..

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।। अपार है, विशाल है, बूँद बूँद में रिस कर तेरी यादों से बना मेरा सारा संसार है, असीमित है जीवन धारा, गहरा है ये जीवन सारा, मगर इन सब से कही गहरा है ये प्यार तुम्हारा…।। ।। उदास हो बैठी है ये दीवारें जिनमें ख़ुद को कैद किये बैठा हूँ, ना दरवाज़े है, ना कोई झरोखा, साँसों की उल्ज़न में उलझे जिस्म में बस ज़िन्दगी बटोरे बैठा हूँ, जला रहा हूँ तिनकों सा हर एक ख़्वाब बारी बारी, मिटा रहा हूँ ये यादें सारी, दो बूंदे छोड़ रहा हूँ आंखों में तेरे ख्वाबों की, जिससे ये रिश्ता भी ना टूटे तुझसे और ये ज़िन्दगी भी चलती रहे…।। ।। इबादत हो चली हैं ये मोहब्बत तेरी इस दिल की, रब भी तू और रूहानियत भी, केसरिया था लिबाज़ मेरी रूह का, न जाने कब मोह लगा बैठा तेरे इस रंग का, रंगो की फेर बदल में उलझती इस भीड़ में बेरंग है ये इबादत अपनी, बेमोल हूँ मैं सफ़ेद कागज़ सा, रंगरेज है, अनमोल है तू किसी स्याही के प्याले सा…।। …विजय शेखर सिंह

Zindagi..

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Kuch der si ho gayi jine me, sayad saanse ab pahuchne lagi hai mere sine me, riwayto me uljhi dor ab sulajhane si lagi hai jab se tode baitha hu nata jamane se... Berang hi sahi chalo ek libaaz to mila pahnne ko, Sut ka hai, sasta sa, na koi rang hai na koi rangrez, khama-kha Zindagi gujar di resham ke kapade banwane me... Yaad hai mujhe ab bhi jab aakhiri baar muskurate dekha tha tumhe, Zindagi tum kabhi chhoti ya berang thi hi nahi sayad maine hi kuch der laga di tujhse dil lagane me... Afshos karna bewajah hai ab to mujhe jana hai, ummar gujari hai teri dahleezh pe, thodi saanse udhar liye jata hu yakeen kar bharosha rakh lauta dunga ye bhi, bas kuch waqt gujar lene de mujhe rutho ko manane me...                                                 ...Vijay Shekhar Singh