रेत का फूल
"रेत का तिनका हूँ, रेत से जन्मा हूँ, महल मेरा मिट्टी का मैं इस टीले का राजा हूँ,
ना डरूंगा ना बिखरूँगा, हर कदम हर मुश्किल मैं आगे बढ़ता जाऊंगा,
आज नहीं तो कल मैं भी जीतूँगा, एक दिन मैं भी रेत में फूल बन मुस्काउंगा"
आज नहीं तो कल मैं भी जीतूँगा, एक दिन मैं भी रेत में फूल बन मुस्काउंगा"
नीले रात के आसमान में चमचमाते तारो की रौशनी में वो अपनी इस कविता को गुनगुनाता अपनी नज़रे एक जगह से दूसरी जगह जाते चाँद पे टिकाये मानो मन ही मन सोच रहा था की चाँद की तरह मैं भी नहीं थकूँगा मैं अपनी माँ को हर खुशियाँ ला के दूँगा, माँ की आवाज से किशन का ध्यान टुटा तो उसने देखा की मिट्टी वाले घर से जहां आधुनिक्ता का कोई नामो निशां न था माँ उसे जोर जोर से आवाज लगा रही थी " किशन, कहा है तू चल घर आजा चाँद को बाद में घूर लेना पहले रोटी खा ले" रेत के टीले से किशन ने भी आवाज लगाई "आया माँ.... " किशन अक्सर शाम को घर के पास वाले रेत के टीले पे जा के ऐसे लेट जाता था मनो सारी दुनिया जीत के थक गया हो, और खुले साफ़ आसमान को देखते हुऐ अपनी कल्पनाओं के परिेंदो को आज़ाद कर देता था, कभी बदलो से चेहरे बनाता तो कभी यूँ ही बदलो को उड़ने देता..तो कभी चाँदनी में परछायिओं से ऐसे खेलता मानो उससे बड़ा जादूगर कोई है ही नहीं..
किशन अपनी माँ के साथ गॉव में रहता था जहां विकाश के नाम पे था तो सिर्फ शहर जाने वाली सड़क जिसपे दिन में सिर्फ दो बार एक पुरानी सरकारी बस लोगो को ऐसे भर के लती थी मनो वो दुनिया की आखरी बस हो, और शायद ऐसा ही था, किशन के पिता नहीं थे इसलिए वो दिन भर छोटे मोटे काम कर के घर के लिए कुछ पैसे कमा लाता था, और अपनी अम्मा की घर के कामो में सहायता भी कर दिया करता था, रेगिस्तान के छोर पे बसा छोटा सा गॉव मानो ज़िन्दगी के कठोर नियमों को मानने से कतराता हो, एक तरफ रूह तक को झुलसा देने वाला रेगिस्तान तो उसी के छोर पे बसा ये छोटा सा गॉव जहां लोग अपना जीवन सरलता से जी रहे थे....
यूँ तो गॉव के लोगो में काफी एकता थी और सारा गॉव मिल जुल के रहता भी था मगर सारे गॉव में रहीम चाचा और थोड़ा बहूत किशन के अलावा कोई भी पढ़ा लिखा नहीं था , किशन के उम्र के लड़के अक्सर अपना सयम जानवरों को चराने या इधर उधर की मस्ती में बिताते थे, मगर किसन को सिखने का शौख था, जानने का शौख था, इसलिए जब भी शहर वाली बस आती तो भाग के ड्राइवर चाचा के पास जाता और शहर से लाई हुई रद्दी में बिकी किताबें माँगने लगता और रहीम चाचा भी उसकी जिज्ञाशा को देख के कभी कहानियो की किताबें दे देते तो कभी सामान्य ज्ञान की...किशन को खुले आसमान में सोने की आदत थी और वो घर के बाहर रहीम चाचा के साथ सोता था, रहीम चाचा ने ही किशन के पिता के गुजरने के बाद परिवार को सहारा दिया था। रहीम चाचा की कोई औलाद न थी इसीलिए किशन को दो माँ और दो मज़हबो की परवरिश मिली थी, वक़्त गुजरता रहा किशन रेत के टीलों का राजा बनते हुए बड़ा होता रहा और उम्र की नज़रो और रहीम चाचा के तजुर्बो से वो गॉव वालो की परेशानियां और मुश्किल हालात में गुजरता जीवन देखता रहा...
किशन बहुत ही परिश्रमी और होनहार था शायद इसी से प्रभावित हो के रहीम चाचा ने किशन की माँ से किशन को शहर पढ़ने भेजने की बात की, किशन की माँ भी रहीम चाचा की बहुत इज़्ज़त करती थी और भाई मानती थी इसलिए हाँ कह दिया, एक दिन सुबह सुबह ही रहीम चाचा ने किशन को लिया और गॉव वालो को अलविदा कहते हुए सरकारी बस को शहर की तरफ दौड़ने लगे,वक़्त यूँ ही गुजरता रहा किशन रोज शाम को घर आ के चाचा, चाची और माँ को स्कूल की ढेरो बाते बताता और सपने देखता आने वाले कल के, रेत के टीले पे वो खुले आसमान की चादर ओढ़ के हज़ारो खयालो को जन्म देता उसका रुझाव लिखने की ओर भी बढ़ने लगा और वो अपने गॉव के लोगो के लिए कुछ करना चाहता था इसलिए वो खूब मन लगा के पढता और मेहनत करता...
हलाकि की किशन के घर की हालत इतनी अच्छी नहीं थी की वो किसी बड़े स्कूल में पढ़ पाता मगर उसे जैसा भी स्कूल मिला वो उसी में खूब मन लगा के पढ़ता रहा, इस बरश किशन की पढ़ाई पूरी हो गई थी और स्कूल में प्रधम आने की ख़ुशी पुरे गॉव की ख़ुशी बन गई थी। लिखने के रुझाव ने स्कूल में ही किशन के कलम में जान फूंक दी थी, और दो मजहबो की तालीम होने की वजह से भाषा का ज्ञान उसे तोफे में मिला था जो उसके लिखे में साँसे भरने का काम करता था, गॉव का पुराना छोटा मंदिर काफी परचित था इसलिए अक्सर बाहर के लोग वहां आया करते थे, किशन अब स्कूल नहीं जाता था इसलिए गॉव में पढ़ाई लिखाई का काम करता था और कुछ पैसे भी कमाता था, ऐसे ही रोज का दिन था मन्दिर में काफी भीड़ थी और किशन रोज की तरह अपने काम में लगा था तभी अचानक मंदिर के एक हिस्से में आग लग जाने के कारण माहौल में अफ़रा तफ़री मच गई, बहुत लोग घायल हुए कुछ मौते भी हुई मगर मरने वालो की संख्या ज़्यादा होती अगर सही वक़्त पे किशन ने पानी की टंकी का पाइप न काटा होता और लोगो को जलते हुए हिस्सों से बाहर न निकाला होता, शायद इस हादसे में भी किशन की भलाई छुपी थीं, हादसे के कुछ देर बाद किशन ने अपनी रोती माँ को चुप कराया और गले लगते हुए कहा "माँ देख मैं ठीक हूँ अब मत रो चुप हो जा.. " सिसकती माँ ने अपने बेटे को कस के गले लगा लिया और भगवान का शुक्रिया करने लगी....
आज किशन के नाम से एक ख़त आया था शहर से और कुछ लोग भी जो किशन से मिलने के लिए बेचैन थे, रहीम चाचा बस में उन्हें लेके आये थे तो बस स्टॉप से वो उन्हें घर भी ले आये, और किशन की माँ को बुला के उनका परिचय कराने लगे और पास ही खेलती गुड़िया को मन्दिर से किशन को बुला लाने को कहा, दरसल वो लोग प्रेस से आये थे जो उभरते लेखकों का सम्मान करते थे और उनके रचनाओं को बुक बना के प्रकाशित थे, किशन ने आते ही उस आदमी को पहचान लिए जिसने उससे मन्दिर के हादसे वाले दिन आखरी बार बात की थी और वो ये भी समझ गया था की उसकी डायरी जो खो गयी थी वो कहा गयी उन लोगो ने किशन को बताया की वो लोग उसकी उस डायरी को "रेत का फूल" के नाम से प्रकाशित करने वाले है और उसे सरकार की तरफ से उसकी बहादुरी के लिए सम्मान मिलने वाला है.....और वो लोग उसके उस ख़त का जवाब भी लेके आये थे जो उसने शहर में पढ़ते हुए सरकार को लिखा था अपने गॉव के हालात को ले के..सरकार ने गॉव को सुधारने की गॉव को कई मुहिमों का हिस्सा बना लिया था....
रेत के टीले पे लेट के आसमान को देखते हुए किशन जिस कविता को गुनगुनाता था शायद वो आज सच हो गयी, किशन ने खुद तो सम्मान पाया ही पाया और अपने गॉव के लिए वो कर दिया जो बरसो में कोई नहीं कर पाया था यहाँ तक की उसके रहीम चाचा भी नहीं, किशन आज सच में बहुत खुश था वो अपनी माँ के साथ खड़ा मुस्कुरा रहा था और बिल्कुल मासूम से फूल की तरह दिख रहा था, मानो रेत में कोई फूल खिल आया हो..... रेत का फूल.......
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